
पाल गड़रिया राजवंश - पाल साम्राज्य मध्यकालीन उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण साम्राज्य माना जाता है, जो कि 750-1174 इसवी तक चला। यह पूर्व-मध्यकालीन राजवंश था। इस वंश के शासकों ने भारत के पूर्वी भाग में एक विशाल साम्राज्य बनाया। जब हर्षवर्धन काल के बाद समस्त उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक गहरा संकट उत्पनन्न हो गया, तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सम्पूर्ण क्षेत्र में पूरी तरह अराजकत फैली थी। पाल साम्राज्य की नींव 750 ई. में राजा गोपाल पाल ने डाली। जो की गड़रिया समुदाय से थे । बताया जाता है कि उस क्षेत्र में फैली अशान्ति को दबाने के लिए कुछ प्रमुख लोगों ने उसको राजा के रूप में चुना। इस प्रकार राजा का निर्वाचन एक अभूतपूर्व घटना थी। इसका अर्थ शायद यह है कि गोपाल उस क्षेत्र के सभी महत्त्वपूर्ण लोगों का समर्थन प्राप्त करने में सफल हो सका और इससे उसे अपनी स्थिति मज़बूत करन में काफ़ी सहायता मिली। गोपाल के बाद उसका बेटा राजा धर्मपाल ७७० ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने ४० वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल ने कन्नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्नौज की गद्दी से [[इन्द्रायुध|इंद्रायूध]] को हराकर [[चक्रायुध]] को आसीन किया। चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तथा [[उत्तरापथ]] स्वामिन की उपाधि धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था। उसने काफी मठ व बौद्ध विहार बनवाये। धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध समर्थक था उसके लेखों में उसे '''परम सौगात''' कहा गया है। उसने विक्रमशिला व सोमपुरी प्रसिद्ध बिहारों की स्थापना की। उसने [[भागलपुर जिला|भागलपुर जिले]] में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया था। उसके देखभाल के लिए सौ गाँव दान में दिये थे।
इस राज्य में वास्तु कला को बहुत बढावा मिला। पाल राजाओ के काल मे बौद्ध धर्म को बहुत बढावा मिला। पाल राजा हिन्दू गड़रिया थे परन्तु वे बौध्द धर्म को भी मानने वाले थे । पाल राजाओ के समय में बौद्ध धर्म को बहुत संरक्षण मिला। पाल राजाओं ने बौद्ध धर्म के उत्थान के लिए बहुत से कार्य किये जो कि इतिहास में अंकित है। पाल राजाओं ने हिन्दू धर्म को आगे बढ़ने के लिए शिव मंदिरों का निर्माण कराया और शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों का निर्माण करवाया |
इतिहास
पालवंश के शासक
पाल वंश सम्पादन - विकिपीडिया
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विभिन्न पुरालेखों और अभिलेखों की व्याख्या से इतिहासकारों ने पाल राजाओं के कालक्रम का इस तरह से अंदाज़ किया है:[13]
नाम
आवधि
गोपाल (पाल)
750-770
धर्मपाल
770-810
देवपाल - विकिपीडिया
देवपाल (9वीं शताब्दी) भारतीय उपमहाद्वीप में बंगाल क्षेत्र का शासक था। वह इस वंश के तीसरे राजा थ और अपने पिता धर्मपाल के बाद साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। देवपाल ने वर्तमान ओडिशा, कश्मीर और अफगानिस्तान को जीतकर साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। पाल अभिलेखों ने उन्हें कई अन्य विजयों का भी श्रेय दिया है। [1] [2] देवपाल ने लगभग पूरे उत्तर भारत को जीत लिया थ और उसे व्यावहारिक रूप से उत्तर भारत के नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का सबसे शक्तिशाली सम्राट माना जाता था। उन्होने अपनी सेनाओं को दक्षिण में विंध्य और पश्चिम में सिंधु तक पहुँचाया। वह कभी भी परास्त नहीं हुए। एक महान विजेता होने के अलावा वह साहित्य , शिक्षा और संस्कृति के महान संरक्षक भी थे। उनके शासनकाल में बंगाल ने हर क्षेत्र में समृद्धि प्राप्त की। उनके शासनकाल के दौरान नालन्दा प्राचीन भारत में मुख्य शिक्षा केंद्र बन गया था। बौद्ध साहित्य के अध्ययन के लिए भारत के विभिन्न भागों और विदेशों से भी लोग नालन्दा महाविहार आए। बंगाल ने उनके शासनकाल में अभूतपूर्व प्रगति की थी। उनके शासनकाल में पालवंश का वर्चस्व अपने शिखर तक पहुंच गया। हालाँकि देवपाल की मृत्यु के कारण पाल वंश का पतन और विघटन हुआ। देवपाल बौद्ध धर्म के अनुयायी थे किन्तु अन्य धार्मिक पंथों के प्रति अत्यन्त सहिष्णु थे और अपने साम्राज्य के भीतर अन्य धर्मों के विकास को बढ़ावा देते थे।कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के प्रचार और भिक्षुओं के कल्याण और आराम के लिए बौद्ध मठों को पांच गाँव दिए गए थे। कहा जाता है कि उन्होंने मगध में कई मंदिरों और मठों का निर्माण भी किया था। जावा और सुमात्रा के शैलेन्द्र राजा बालापुत्रदेव ने नालंदा में एक मठ बनाने के लिए पाँच गाँवों का अनुदान माँगकर अपने राज्य में दूत भेजा था। देवपाल एक योग्य और सक्षम शासक था। देवपाल ने अपने पिता से विरासत में जो विशाल राज्य प्राप्त किया था, उसे बरकरार रखा और अपने पिता के विशाल साम्राज्य में नया साम्राज्य भी मिलाया। बादल स्तम्भ शिलालेख उसे पूरे उत्तर भारत का सर्वोपरि स्वामी बताते हैं, जो हिमालय से लेकर विन्ध्य तक और पूर्वी से पश्चिमी समुद्र तक फैला हुआ था। उनके शासनकाल को उत्कल, हूण, गुर्जर और द्रविड़ों जैसे विरोधियों के खिलाफ सैन्य अभियानों के लिए जाना जाता है। “बादल स्तंभ शिलालेख” में दर्शाया गया है कि देवपाल के ब्राह्मण मंत्री दरभापाणि और केदार मित्र देवपाल के साम्राज्य के विस्तार में सहायक थे। बादल स्तंभ शिलालेख में यह भी दर्शाया गया है कि दरभापाणि ने अपनी कूटनीति का उपयोग करते हुए देवपाल को पूरे उत्तर भारत का स्वामी बना दिया था। देवपाल ने उत्कल, हूण और गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य को जीत लिया था। उन्होंने सीमांत राज्यों को जीतकर अपने पिता के साम्राज्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उसने हिंसक जनजाति 'खस' पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। पूर्व में प्रागज्योतिष और कामरूप के राजा उनके जागीरदार बन गए। दक्षिण में उत्कल के राजा को युद्ध में हराया था। देवपाल ने दक्षिण भारत में द्रविड़ों पर विजय प्राप्त की थी। देवपाल ने पाला राजा देवपाल के विरोधी पांड्य राजा श्री वल्लभ को भी हराया। एक प्रशासक के रूप में देवपाल बहुत परोपकारी थे। देवपाल धर्मपाल का पुत्र एवं पाल वंश का उत्तराधिकारी था। इसे 810 ई. के लगभग पाल वंश की गद्दी पर बैठाया गया था। देवपाल ने लगभग 810 से 850 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य किया। उसने 'प्राग्यज्योतिषपुर' (असम), उड़ीसा एवं नेपाल के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। देवपाल की प्रमुख विजयों में गु
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810-850
शूर पाल महेन्द्रपाल
850-854
विग्रह पाल
854-855
नारायण पाल
855-908
राज्यो पाल
908-940
गोपाल 2
940-960
विग्रह पाल 2
960-988
महिपाल
988-1038
नय पाल
1038-1055
विग्रह पाल 3
1055-1070
महिपाल 2
1070-1075
शूर पाल 2
1075-1077
रामपाल
1077-1130
कुमारपाल
1130-1140
गोपाल 3
1140-1144
मदनपाल
1144-1162
गोविन्द पाल
1162-1174
पाल राजवंश के पश्चात सेन राजवंश ने बंगाल पर १६० वर्ष राज किया।
=== देवपाल ===
धर्मपाल के बाद उसका पुत्र [[देवपाल]] गद्दी पर बैठा। इसने अपने पिता के अनुसार विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया। इसी के शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान आया था। उसने [[मुंगेर]] को अपनी राजधानी बनाई। उसने पूर्वोत्तर में [[प्रगज्योतिषपुर|प्राज्योतिषपुर]], उत्तर में [[नेपाल]], पूर्वी तट पर [[उड़ीसा]] तक विस्तार किया। [[कन्नौज]] के संघर्ष में देवपाल ने भाग लिया था। उसके शासनकाल में [[दक्षिण-पूर्व एशिया]] के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे। उसने जावा के शासक [[शैलेन्द्र राजवंश|शैलेंद्र]] के आग्रह पर नालन्दा में एक विहार की देखरेख के लिए ५ गाँव अनुदान में दिए।
देवपाल ने ८५० ई. तक शासन किया था। देवपाल के बाद पाल वंश की अवनति प्रारम्भ हो गयी। [[मिहिर भोज|मिहिरभोज]] और [[महेन्द्रपाल प्रथम|महेन्द्रपाल]] के शासनकाल में प्रतिहारों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया।
=== महीपाल ===
* ११वीं सदी में [[महिपाल|महीपाल प्रथम]] ने ९८८ ई.-१०३८ ई. तक शासन किया। महीपाल को पाल वंश का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है। उसने समस्त [[बंगाल]] और [[मगध]] पर शासन किया।
* महीपाल के बाद पाल वंशीय शासक निर्बल थे जिससे आन्तरिक द्वेष और सामन्तों ने विद्रोह उत्पन्न कर दिया था।
* == पाल वंश उत्तर प्रदेश दिल्ली हरियाणा बिहार में पाए जाने वाले पाल ( पाॅल ) गड़रिया समुदाय के वंशज थे ।
* इस अराजकता के परिवेश में तुर्कों का आक्रमण प्रारम्भ हो गया।
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